कृष्णा भक्तिन राधा

रंगी मैं तो श्याम रंग में
दूजा रंग कोई न चढ़ पाए रे ,
ये रंग ऐसा चटख रंग है
सब रंग फीका पड़ जाए रे ।

सुन तेरी मुरलिया की धुन
सुध-बुध मैं बिसारी रे ,
नित-नित यमुना तट पर
काहे श्याम बंसी बजाए रे ।

मैं तो तेरी प्रेम पुजारिन
फिर काहे मोहे ऐसे सताए रे ,
ताने मारे सखियाँ, सास,ननदिया
तू तो सारी बतियाँ जाने रे ।

मैं भाग्यवान तेरे कारण
जग मोहे प्रेम भक्तिन जाने रे ,
न बजा तू मुरलिया मधुर
बतियाँ काहे न मेरी माने रे ।

तू रसिया सब मन बसिया
अकेली राधा प्रेम दिवानी नहीं रे ,
नाचे मगन तू गोपियों के संग
बंसी काहे राधा नाम पुकारे रे ।

उर में भर ली श्याम तेरो नाम
अब चित्त को कुछ न भाए रे ,
रात-दिन रटूं श्याम-श्याम
नाम दूजा न होठों पर आए रे ।

पूर्णतः मौलिक- ज्योत्स्ना पाॅल।

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